भारत की विदेश नीति हमेशा से अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखने के लिए जानी जाती है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से रियायती दरों पर कच्चे तेल की खरीद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जहां एक ओर पश्चिमी देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे थे, वहीं भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए रूस से तेल आयात को रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचा दिया। लेकिन अब, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 25% टैरिफ के ऐलान ने भारत की इस रणनीतिक चाल पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। क्या यह टैरिफ भारत-रूस के दशकों पुराने संबंधों पर भारी पड़ेगा? क्या भारत को अपनी ऊर्जा नीति में बदलाव करना होगा? यह लेख इसी कूटनीतिक और आर्थिक पहेली को सुलझाने का प्रयास है।
शीत युद्ध से आज तक: भारत-रूस संबंधों का इतिहास
भारत और रूस का रिश्ता दशकों पुराना है। शीत युद्ध के दौरान, भारत ने भले ही गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई, लेकिन वह सोवियत संघ समर्थित साम्यवाद का विरोध करने वाले पश्चिमी देशों के प्रयासों का हिस्सा नहीं बना। इसका परिणाम मॉस्को के साथ एक मजबूत कूटनीतिक संबंध के रूप में सामने आया, जिसमें बड़े पैमाने पर हथियारों का हस्तांतरण, प्रौद्योगिकी साझाकरण और कूटनीतिक समर्थन शामिल था।
सोवियत संघ के विघटन के बाद भी रूस भारत का सबसे महत्वपूर्ण हथियार आपूर्तिकर्ता बना रहा। भारत के अधिकांश सैन्य प्लेटफ़ॉर्म—विशेषकर नौसेना और वायु सेना में—या तो रूस में बने हैं या उनमें रूसी घटक शामिल हैं। यह रिश्ता केवल सैन्य तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि समय के साथ आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी में भी विकसित होता गया।
कच्चे तेल की कूटनीति: जब रूस बना भारत का नंबर वन सप्लायर
फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो पश्चिमी देशों ने मॉस्को पर कड़े प्रतिबंध लगाए, जिसमें तेल आयात पर प्रतिबंध भी शामिल था। उस समय, भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी सिर्फ 0.2% थी। लेकिन, अगले ही कुछ वर्षों में यह तस्वीर पूरी तरह बदल गई।
मई 2023 तक, यह आंकड़ा 40% से अधिक हो गया, जिसने पारंपरिक मध्य पूर्वी आपूर्तिकर्ताओं जैसे इराक और सऊदी अरब को पीछे छोड़ दिया। केप्लर (Kpler) नामक डेटा और एनालिटिक्स प्रदाता के अनुसार, मई 2023 में रूसी आयात 2.15 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) के शिखर पर पहुँच गया। जुलाई 2024 में भी रूस ने 2 मिलियन bpd से अधिक की आपूर्ति की, जो भारत के कच्चे तेल के आयात का 41% था। इसकी तुलना में, इराक की हिस्सेदारी 20%, सऊदी अरब की 11% और अमेरिका की सिर्फ 4% थी।
यह सिलसिला आज भी जारी है, जहाँ मासिक औसत लगभग 1.75 से 1.78 मिलियन bpd बना हुआ है। इसके विपरीत, इराक और सऊदी अरब क्रमशः लगभग 900,000 bpd और 700,000 bpd की आपूर्ति करते हैं।
रूस से सस्ता तेल: भारत को मिला बड़ा फायदा
जी7, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया द्वारा दिसंबर 2022 में रूस के तेल पर $60 प्रति बैरल का प्राइस कैप लगाने के बाद, रूस ने अपने राजस्व प्रवाह को बनाए रखने के लिए भारत और चीन जैसे देशों से संपर्क साधा।
शुरुआत में, रूसी कच्चे तेल को ब्रेंट की कीमतों से लगभग $40 प्रति बैरल कम पर बेचा जा रहा था। रॉयटर्स के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी-सितंबर 2023 की अवधि में, भारत ने रूसी कच्चे तेल के लिए प्रति मीट्रिक टन औसतन $525.60 का भुगतान किया—जो इराक से मिलने वाले तेल की दर से प्रति बैरल लगभग $5 कम था। ICRA की रिपोर्ट बताती है कि भारत ने पिछले दो वित्तीय वर्षों में तेल आयात पर लगभग $13 बिलियन की बचत की है।
ट्रंप की टैरिफ धमकी: क्या भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की इस रणनीतिक ऊर्जा नीति पर नया दबाव डाला है। ट्रंप ने भारतीय वस्तुओं पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया है, जिसके साथ रूस से तेल खरीदने के लिए “जुर्माना” भी लगाया जाएगा।
ट्रंप ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, “भारत को 25% टैरिफ, और साथ ही एक जुर्माना भी देना होगा,” और यह भी जोड़ा कि चीन के साथ भारत रूस का “ऊर्जा का सबसे बड़ा खरीदार” है। उन्होंने यह भी धमकी दी कि अगर मॉस्को 50 दिनों के भीतर यूक्रेन के साथ शांति समझौते पर सहमत नहीं होता है, तो वह रूस से तेल खरीदने वाले सभी देशों पर प्रतिबंध लगा देंगे।
भारत की घरेलू मजबूरियाँ और कूटनीतिक रुख
भारत की दैनिक तेल खपत लगभग 5.2 मिलियन बैरल है, जिसका 85% से अधिक हिस्सा आयात किया जाता है। यह आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है। आजादी के समय, हमारा घरेलू उत्पादन मात्र 0.25 मिलियन मीट्रिक टन था, और 1974 में बॉम्बे हाई फील्ड जैसी बड़ी खोजों के बाद भी, यह उत्पादन मांग के अनुरूप नहीं बढ़ पाया है।
नई दिल्ली ने पूरे यूक्रेन युद्ध के दौरान एक “तटस्थ” कूटनीतिक रुख बनाए रखा है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बार-बार यह तर्क दिया है कि भारत की खरीद ने वैश्विक तेल की कीमतों को आसमान छूने से रोका है। उन्होंने अप्रैल 2024 में कहा था, “अगर भारत रूसी तेल नहीं खरीदता, तो कीमतें बहुत बढ़ जातीं।”
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, रूस से भारत का कच्चे तेल का आयात बिल FY 2021-22 में $2.5 बिलियन से बढ़कर FY 2022-23 में $31 बिलियन हो गया। यह आंकड़ा FY 2023-24 में फिर से बढ़कर $140 बिलियन से अधिक हो गया। यह बताता है कि भारत की आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से सस्ता तेल कितना महत्वपूर्ण है।
ट्रंप की धमकी के बाद, भारत की सरकार एक नाजुक स्थिति में है। उसे अपने राष्ट्रीय हितों, आर्थिक लाभ और अमेरिका के साथ संबंधों के बीच संतुलन बनाना होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत अपनी दशकों पुरानी दोस्ती और नई चुनौतियों के बीच कैसे सामंजस्य बिठाता है।