खाद्य अपशिष्ट से बना प्राकृतिक प्लास्टिक: मोनाश यूनिवर्सिटी की बायोप्लास्टिक क्रांति

क्या बचा हुआ खाना प्लास्टिक का विकल्प बन सकता है?

हर दिन भोजन के बाद बचा हुआ खाना अक्सर कचरे में चला जाता है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसे एक नई दिशा दी है। मोनाश यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने खाद्य अपशिष्ट से प्राप्त शर्करा को ऐसे प्राकृतिक प्लास्टिक में बदलने की तकनीक विकसित की है, जो उपयोग के बाद स्वयं विघटित हो जाता है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता।

🧪 शोध की शुरुआत: बैक्टीरिया से बनी प्लास्टिक फैक्ट्री

शोधकर्ताओं ने पारंपरिक रासायनिक प्रयोगशालाओं की बजाय जीवित बैक्टीरिया का उपयोग किया। दो प्रकार के मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव — Cupriavidus necator और Pseudomonas putida — को ग्लूकोज और फ्रुक्टोज का मिश्रण खिलाया गया। इन बैक्टीरिया ने अपनी कोशिकाओं में प्लास्टिक जैसे पदार्थ जमा कर लिए।

  • Cupriavidus necator ने कठोर और चमकदार PHB पॉलिमर बनाया
  • Pseudomonas putida ने मुलायम और लचीला mcl-PHA तैयार किया

बाद में इन दोनों को मिलाकर वैज्ञानिकों ने लगभग 20 माइक्रोन मोटी फिल्में तैयार कीं जो सामान्य प्लास्टिक की तरह दिखती हैं लेकिन पर्यावरण के अनुकूल हैं।

🧬 दो प्रकार के प्राकृतिक प्लास्टिक की विशेषताएं

🔹 PHB (Polyhydroxybutyrate)

  • कठोर, चमकदार लेकिन भंगुर
  • 175°C पर पिघलता है

🔹 mcl-PHA (Medium Chain Length Polyhydroxyalkanoate)

  • मुलायम, लचीला, फैलने योग्य
  • 40°C पर मुलायम हो जाता है

इन दोनों के मिश्रण से बनी फिल्में दो पिघलन बिंदु दिखाती हैं, जिससे यह कमरे के तापमान पर मजबूत और गर्म होने पर लचीली रहती हैं।

🔬 प्रयोग के परिणाम: बैक्टीरिया की क्षमता

बैक्टीरियाशर्करा स्रोतउत्पादन क्षमता
C. necatorफ्रुक्टोज60% PHB
C. necatorग्लूकोज45% PHB
P. putidaफ्रुक्टोज22% mcl-PHA
P. putidaग्लूकोज18% mcl-PHA

माइक्रोस्कोप से देखा गया कि C. necator की कोशिकाएं PHB से भरकर 30 माइक्रोन तक फैल गईं, जबकि P. putida की कोशिकाएं छोटी लेकिन कई छोटे पॉलिमर कणों से भरी थीं।

🌡️ तापमान और लचीलापन: व्यवहारिक विश्लेषण

  • मिश्रित फिल्में दो पिघलन बिंदु दिखाती हैं
  • 20 माइक्रोन मोटी फिल्में पूरी तरह क्रिस्टल नहीं बनातीं
  • छोटे और लचीले ढांचे विकसित होते हैं
  • समान रूप से खिंचाव संभव होता है बिना टूटे

यह विशेषताएं इन्हें खाद्य पैकिंग, कृषि फिल्म और मेडिकल कोटिंग के लिए उपयुक्त बनाती हैं।

🔄 कचरे का पुनः उपयोग: परिपत्र अर्थव्यवस्था की ओर

यह पूरी प्रक्रिया पेट्रोलियम पर निर्भर नहीं करती। इसमें उपयोग किए गए शर्करा स्रोत जैसे स्टार्च और कृषि अवशेष बैक्टीरिया के लिए भोजन बनते हैं। यह प्रक्रिया:

  • नवीकरणीय है
  • ऊर्जा की खपत कम करती है
  • अपशिष्ट लगभग नहीं के बराबर होता है
  • हल्के अम्लीय वातावरण में भी कार्य करती है

🌍 प्लास्टिक के उपयोग का नया भविष्य

हर साल दुनिया में 400 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से अधिकांश लैंडफिल या समुद्र में चला जाता है। इस शोध से यह स्पष्ट होता है कि:

  • बायोप्लास्टिक कचरे से उत्पन्न हो सकता है
  • यह पारंपरिक प्लास्टिक की तरह दिखता है
  • उपयोग के बाद स्वयं विघटित हो जाता है

🤝 भविष्य की दिशा: उद्योग के साथ साझेदारी

शोध दल अब Great Wrap और Enzide जैसी कंपनियों के साथ मिलकर इसके व्यावसायिक उपयोग का परीक्षण कर रहा है। संभावित उपयोग:

  • फलों-सब्जियों की पैकिंग
  • कम्पोस्टेबल कंटेनरों की लाइनिंग
  • दवाओं की जैव-विघटनीय कोटिंग

यह केवल तकनीकी नवाचार नहीं, बल्कि सोच में बदलाव है — जिसमें “कचरा” अब संसाधन बनता है।

❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1: क्या यह बायोप्लास्टिक पूरी तरह से विघटित हो जाता है?

हाँ, यह प्राकृतिक रूप से विघटित हो जाता है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता।

Q2: क्या यह तकनीक भारत में लागू की जा सकती है?

बिलकुल, भारत में खाद्य अपशिष्ट की मात्रा अधिक है, जिससे यह तकनीक स्थानीय स्तर पर प्रभावी हो सकती है।

Q3: क्या यह प्लास्टिक खाद्य पैकिंग के लिए सुरक्षित है?

शोध के अनुसार, यह खाद्य पैकिंग के लिए उपयुक्त और सुरक्षित है।

Q4: क्या यह तकनीक व्यावसायिक स्तर पर उपलब्ध है?

फिलहाल इसका परीक्षण चल रहा है, लेकिन जल्द ही यह बाजार में आ सकती है।

🔚 निष्कर्ष: पर्यावरण के लिए एक नई उम्मीद

मोनाश यूनिवर्सिटी का यह शोध दिखाता है कि खाद्य अपशिष्ट को उपयोगी और पर्यावरण के अनुकूल प्लास्टिक में बदला जा सकता है। यह नवाचार न केवल प्लास्टिक प्रदूषण को कम करेगा, बल्कि परिपत्र अर्थव्यवस्था की ओर भी एक बड़ा कदम है।

External Source: Patrika Report

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