भारत के दो प्रमुख सामाजिक सुरक्षा संस्थानों—कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) और पोस्ट ऑफिस सेविंग बैंक (POSB)—जल्द ही भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की निगरानी में आ सकते हैं। यह कदम उस समय उठाया गया जब POSB में 96 करोड़ रुपये के फर्जी लेनदेन का मामला सामने आया। सरकार ने RBI से इन संस्थानों की निगरानी और तकनीकी मार्गदर्शन की औपचारिक मांग की है।
🔍 घोटाले की पृष्ठभूमि: कैसे हुआ 96 करोड़ का फर्जीवाड़ा?
डाक विभाग की POSB योजनाओं में मई 2024 तक 24 महीनों की अवधि में 96 करोड़ रुपये का गबन सामने आया। यह फर्जीवाड़ा मुख्य रूप से संचय पोस्ट डेटाबेस में मैन्युअल छेड़छाड़ के जरिए किया गया था।
📌 प्रमुख तथ्य:
- 14 डाक सर्किलों में 60 से अधिक गबन के मामले सामने आए।
- 985 अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई।
- POSB खातों में कुल 12.56 लाख करोड़ रुपये जमा हैं।
🏦 EPFO और POSB: आम जनता की बचत पर संकट
EPFO और POSB दोनों संस्थान आम जनता की गाढ़ी कमाई को संभालते हैं। इनकी पारदर्शिता और सुरक्षा बेहद अहम है।
💰 फंड का आकार:
- EPFO: 30 करोड़ सदस्यों के लिए ₹26 लाख करोड़ का फंड।
- POSB: 29 करोड़ खातों में ₹12.56 लाख करोड़ की जमा राशि।
इन संस्थानों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और मजबूत नियंत्रण प्रणाली की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी।
📩 मंत्रालयों की कार्रवाई: RBI को लिखे गए पत्र
🏢 श्रम और रोजगार मंत्रालय:
- फरवरी 2025 में RBI को पत्र लिखकर EPFO के फंड प्रबंधन और निवेश प्रक्रियाओं पर सलाह मांगी गई।
- RBI की रिपोर्ट में कई खामियां उजागर हुईं:
- कमजोर अकाउंटिंग स्टैंडर्ड्स
- हितों का टकराव (रेगुलेटर और फंड मैनेजर की दोहरी भूमिका)
🏤 डाक विभाग:
- वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग से संपर्क कर RBI के साथ MoU साइन करने का प्रस्ताव रखा गया।
- उद्देश्य: आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की समीक्षा और सुधार।
🧾 RBI की रिपोर्ट में क्या कहा गया?
RBI ने अपनी समीक्षा रिपोर्ट में EPFO और POSB के लिए कई सुझाव दिए हैं:
📌 प्रमुख सिफारिशें:
- रेगुलेटर और फंड मैनेजर की भूमिकाएं अलग की जाएं।
- मार्क-टू-मार्केट अकाउंटिंग प्रणाली अपनाई जाए।
- लायबिलिटीज का एक्चुअरियल रिव्यू किया जाए।
- निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाई जाए।
- इक्विटी में हिस्सेदारी बढ़ाने की सिफारिश।
- वर्तमान में EPFO का निवेश:
- 45–65% सरकारी प्रतिभूतियों में
- 20–45% कॉरपोरेट डेट में
- अधिकतम 15% इक्विटी में
🧑⚖️ संयुक्त समिति का गठन: समाधान की दिशा में कदम
EPFO बोर्ड ने RBI, वित्त मंत्रालय और श्रम मंत्रालय के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक संयुक्त समिति के गठन को मंजूरी दी है। इसका उद्देश्य है:
- हितों के टकराव को दूर करना
- निवेश प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाना
- आंतरिक नियंत्रण प्रणाली को मजबूत करना
📉 POSB में गड़बड़ियों की विस्तृत समीक्षा
डाक विभाग की ऑडिट रिपोर्ट में POSB संचालन में गंभीर अनियमितताएं पाई गईं:
🔍 ऑडिट निष्कर्ष:
- मैन्युअल डेटा एंट्री के कारण फर्जीवाड़ा संभव हुआ।
- Sanchay Post डेटाबेस में छेड़छाड़ की गई।
- कई मामलों में वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका।
📊 सामाजिक सुरक्षा पर असर: जनता की चिंता बढ़ी
इस घोटाले ने आम नागरिकों के मन में इन संस्थानों की विश्वसनीयता को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। EPFO और POSB जैसे संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना अब सरकार की प्राथमिकता बन गई है।
❓ FAQs
Q1: EPFO और POSB की निगरानी के लिए RBI को क्यों शामिल किया जा रहा है?
सरकार चाहती है कि RBI इन संस्थानों की निगरानी और तकनीकी मार्गदर्शन करे ताकि पारदर्शिता और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
Q2: POSB घोटाले में कितनी राशि का फर्जीवाड़ा हुआ?
करीब ₹96 करोड़ का गबन सामने आया है, जो 24 महीनों में हुआ।
Q3: EPFO का कुल फंड कितना है?
EPFO लगभग ₹26 लाख करोड़ का फंड मैनेज करता है, जिसमें 30 करोड़ सदस्य शामिल हैं।
Q4: क्या EPFO की निवेश नीति में बदलाव होगा?
RBI ने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने और इक्विटी हिस्सेदारी बढ़ाने की सिफारिश की है।
🔚 निष्कर्ष: पारदर्शिता की ओर एक बड़ा कदम
96 करोड़ रुपये के घोटाले ने भारत के सामाजिक सुरक्षा ढांचे की कमजोरियों को उजागर किया है। सरकार का RBI को निगरानी में शामिल करना एक सकारात्मक पहल है, जिससे भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोका जा सकेगा। EPFO और POSB जैसे संस्थानों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना अब समय की मांग है।
External Source: Patrika Report
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