नोबेल समिति ने 6 अक्टूबर 2025 को चिकित्सा श्रेणी के लिए नोबेल पुरस्कार की घोषणा की। इस वर्ष यह प्रतिष्ठित सम्मान संयुक्त रूप से तीन वैज्ञानिकों—अमेरिका की मैरी ई. ब्रंकॉ, फ्रेड राम्सडेल और जापान के शिमोन साकागुची—को प्रदान किया गया है। इनकी खोज ने ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ की प्रक्रिया को उजागर किया, जिससे ऑटोइम्यून बीमारियों और कैंसर के इलाज में नई दिशा मिली।
🔬 क्या है ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’? – शरीर की सुरक्षा का संतुलन
‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ एक ऐसी जैविक प्रक्रिया है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को अपने ही स्वस्थ ऊतकों पर हमला करने से रोकती है। यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि:
- यह ऑटोइम्यून रोगों जैसे टाइप 1 डायबिटीज, मल्टीपल स्क्लेरोसिस और रूमेटॉइड आर्थराइटिस को समझने में मदद करती है।
- इससे कैंसर इम्यूनोथेरेपी और अंग प्रत्यारोपण में नई संभावनाएं खुलीं।
- यह खोज बताती है कि शरीर की रक्षा प्रणाली केवल आक्रमण नहीं करती, बल्कि संतुलन भी बनाए रखती है।
👩🔬 वैज्ञानिकों की भूमिका और योगदान
🧬 मैरी ई. ब्रंकॉ: फॉक्सपी3 जीन की खोजकर्ता
- जन्म: 1961, अमेरिका
- शिक्षा: पीएचडी, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी
- वर्तमान पद: सीनियर प्रोग्राम मैनेजर, इंस्टीट्यूट फॉर सिस्टम्स बायोलॉजी, सिएटल
- उपलब्धि: 2001 में फॉक्सपी3 जीन की पहचान की, जो इम्यून टॉलरेंस में अहम भूमिका निभाता है।
🧪 फ्रेड राम्सडेल: जीन म्यूटेशन और थेरेपी के विशेषज्ञ
- जन्म: 1960, अमेरिका
- शिक्षा: पीएचडी, UCLA
- वर्तमान पद: साइंटिफिक एडवाइजर, सोनोमा बायोथेराप्यूटिक्स
- उपलब्धि: फॉक्सपी3 जीन में म्यूटेशन की पहचान की, जिससे IPEX सिंड्रोम जैसी बीमारियों का इलाज संभव हुआ।
🧠 शिमोन साकागुची: रेगुलेटरी टी सेल्स के खोजकर्ता
- जन्म: 1951, जापान
- शिक्षा: एमडी और पीएचडी, क्योटो यूनिवर्सिटी
- वर्तमान पद: डिस्टिंग्विश्ड प्रोफेसर, ओसाका यूनिवर्सिटी
- उपलब्धि: 1995 में रेगुलेटरी टी सेल्स की खोज की, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को संतुलित रखते हैं।
💡 खोज का वैज्ञानिक महत्व और चिकित्सा में उपयोग
तीनों वैज्ञानिकों की खोजों ने इम्यूनोलॉजी के क्षेत्र में निम्नलिखित बदलाव लाए:
- ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज के लिए Tregs थेरेपी का विकास।
- कैंसर इम्यूनोथेरेपी में नई रणनीतियों की शुरुआत।
- अंग प्रत्यारोपण में अस्वीकृति को रोकने के लिए इम्यून मॉड्यूलेशन तकनीक।
- IPEX सिंड्रोम जैसी दुर्लभ बीमारियों के लिए जीन-आधारित उपचार।
💰 पुरस्कार राशि और सम्मान समारोह
- पुरस्कार राशि: 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (लगभग 10 लाख डॉलर)
- वितरण: तीनों वैज्ञानिकों में समान रूप से बांटी जाएगी
- समारोह: 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में आयोजित होगा, जो अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि है।
📚 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: नोबेल पुरस्कार और चिकित्सा की परंपरा
- नोबेल पुरस्कार की शुरुआत 1901 में हुई थी।
- चिकित्सा श्रेणी में पहले पुरस्कार एलेक्जेंडर फ्लेमिंग को पेनिसिलिन की खोज के लिए मिला था।
- पिछले वर्ष यह पुरस्कार माइक्रोआरएनए की खोज के लिए विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रूवकुन को मिला था।
🌍 वैश्विक प्रभाव: चिकित्सा क्षेत्र में नई दिशा
इस खोज ने वैश्विक स्तर पर चिकित्सा अनुसंधान को प्रभावित किया है:
- अमेरिका, जापान और यूरोप में Tregs आधारित क्लीनिकल ट्रायल्स शुरू हुए हैं।
- ऑटोइम्यून रोगों के लिए वैकल्पिक दवाओं का विकास हो रहा है।
- कैंसर के इलाज में इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने की तकनीकें अपनाई जा रही हैं।
📊 वैज्ञानिक समुदाय की प्रतिक्रिया
- नोबेल समिति ने इसे “इम्यूनोलॉजी में मील का पत्थर” बताया।
- कई शोध संस्थानों ने इसे “फंडामेंटल साइंस से क्लीनिकल एप्लिकेशन तक की यात्रा” कहा।
- चिकित्सा विशेषज्ञों ने इसे “मानव स्वास्थ्य के लिए क्रांतिकारी खोज” माना।
❓ FAQs
Q1. नोबेल पुरस्कार 2025 में चिकित्सा श्रेणी का विजेता कौन है?
A1. मैरी ब्रंकॉ, फ्रेड राम्सडेल और शिमोन साकागुची को संयुक्त रूप से यह पुरस्कार मिला है।
Q2. ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ क्या है?
A2. यह एक जैविक प्रक्रिया है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को अपने ही ऊतकों पर हमला करने से रोकती है।
Q3. फॉक्सपी3 जीन का क्या महत्व है?
A3. यह जीन रेगुलेटरी टी सेल्स के विकास को नियंत्रित करता है, जो इम्यून टॉलरेंस बनाए रखते हैं।
Q4. Tregs थेरेपी किस बीमारी में उपयोगी है?
A4. यह ऑटोइम्यून बीमारियों जैसे टाइप 1 डायबिटीज, रूमेटॉइड आर्थराइटिस आदि में उपयोगी है।
Q5. पुरस्कार राशि कितनी है?
A5. लगभग 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना, जो तीनों वैज्ञानिकों में बांटी जाएगी।
🔚 निष्कर्ष: चिकित्सा विज्ञान में नई क्रांति की शुरुआत
नोबेल पुरस्कार 2025 में चिकित्सा श्रेणी की यह घोषणा न केवल वैज्ञानिक उपलब्धि का सम्मान है, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत भी है। ‘पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस’ की खोज ने यह साबित कर दिया है कि मूलभूत विज्ञान से ही जीवनरक्षक उपचारों की नींव रखी जाती है।
External Source: Patrika Report
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