पश्चिम बंगाल में कुर्मी आंदोलन: ST दर्जे की मांग और 35 सीटों पर असर

पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय ने अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग को लेकर आंदोलन तेज़ कर दिया है। 20 सितंबर से शुरू हुए इस विरोध प्रदर्शन ने राज्य की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है, खासकर उन 35 विधानसभा सीटों पर जहां इस समुदाय का प्रभाव निर्णायक माना जाता है।

🔍 आंदोलन की शुरुआत और हालिया घटनाक्रम

📅 20 सितंबर से उग्र प्रदर्शन

  • कुर्मी समुदाय ने 20 सितंबर से रेल और सड़क मार्गों को जाम कर विरोध प्रदर्शन शुरू किया।
  • पुरुलिया जिले के कोटशिला रेलवे स्टेशन पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं।
  • पुलिस पर हमला करने के आरोप में 29 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया।

🚨 हिंसा और गिरफ्तारी

  • शनिवार को हुई हिंसक झड़प में दो IPS अधिकारियों सहित छह पुलिसकर्मी घायल हुए।
  • पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर भीड़ को तितर-बितर किया।
  • प्रदर्शनकारियों ने रेलवे ट्रैक पर बैठकर ट्रेनों को रोका, जिससे यातायात बाधित हुआ।

📜 कुर्मी समुदाय की मांगें क्या हैं?

🧭 ST दर्जे की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • 1931 की जनगणना में कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
  • 1950 में स्वतंत्र भारत की नई सूची में उनका नाम हटा दिया गया।
  • समुदाय का दावा है कि ब्रिटिश काल के दस्तावेजों में उन्हें आदिवासी माना गया था।

🎯 वर्तमान स्थिति

  • फिलहाल कुर्मी समुदाय को OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) का दर्जा प्राप्त है।
  • ST दर्जा मिलने पर उन्हें शिक्षा, नौकरी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में अधिक आरक्षण मिलेगा।
  • आंदोलनकारी चाहते हैं कि उनकी पहचान को फिर से बहाल किया जाए।

🗳️ विधानसभा चुनावों पर आंदोलन का संभावित असर

📊 कुर्मी समुदाय का जनसांख्यिकीय प्रभाव

  • पश्चिम बंगाल में कुर्मी समुदाय की अनुमानित आबादी लगभग 50 लाख है।
  • ये समुदाय पुरुलिया, बांकुरा, झारग्राम, पश्चिम मेदिनीपुर और दक्षिण दिनाजपुर जिलों में केंद्रित है।

🗺️ 35 विधानसभा सीटों पर दबदबा

  • 2021 के चुनाव विश्लेषण के अनुसार, कुर्मी समुदाय का प्रभाव 30–35 सीटों पर निर्णायक रहा।
  • कई सीटों पर जीत-हार का अंतर बेहद कम था, जिससे उनकी भूमिका अहम हो जाती है।

🛤️ आंदोलन के तरीके और रणनीति

🚆 रेल रोको और सड़क जाम

  • “रेल रोको – डहर छेका” आंदोलन के तहत कई रेलवे स्टेशनों पर ट्रैक जाम किए गए।
  • झारखंड और ओडिशा में भी आंदोलन का असर देखा गया, जिससे 100 से अधिक ट्रेनें प्रभावित हुईं।

📅 आगामी योजनाएं

  • दुर्गा पूजा के बाद 5 अक्टूबर को पुरुलिया शहर के टैक्सी स्टैंड पर “आतंकवाद विरोधी बैठक” आयोजित की जाएगी।
  • उसी दिन DM और SP को ज्ञापन सौंपने की योजना है।

⚖️ कानूनी और प्रशासनिक प्रतिक्रिया

🏛️ हाईकोर्ट का आदेश

  • 18 सितंबर को कलकत्ता हाईकोर्ट ने रेल और सड़क जाम को “अवैध और असंवैधानिक” घोषित किया।
  • राज्य पुलिस को सुरक्षा बढ़ाने और आंदोलन को रोकने के निर्देश दिए गए।

👮 पुलिस की कार्रवाई

  • पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया।
  • आंदोलनकारियों का आरोप है कि पुलिस ने “आतंक का माहौल” बनाया है।
  • Rapid Action Force की तैनाती की गई थी।

📚 आंदोलन का सामाजिक और सांस्कृतिक पक्ष

🧬 आदिवासी पहचान की बहाली

  • कुर्मी समुदाय खुद को आदिवासी मानता है और अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करना चाहता है।
  • उनका कहना है कि ST दर्जा उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगा।

🗣️ भाषा की मान्यता की मांग

  • आंदोलनकारी Kurmali भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग भी कर रहे हैं।

📌 आंदोलन से जुड़े प्रमुख बिंदु

  1. कुर्मी समुदाय की ST दर्जे की मांग दशकों पुरानी है।
  2. 1931 में ST माना गया, 1950 में सूची से बाहर कर दिया गया।
  3. वर्तमान में OBC दर्जा प्राप्त है, जिससे समुदाय असंतुष्ट है।
  4. आंदोलन का असर 35 विधानसभा सीटों पर पड़ सकता है।
  5. रेल और सड़क जाम से 100 से अधिक ट्रेनें प्रभावित हुईं।
  6. हाईकोर्ट ने आंदोलन को अवैध बताया, पुलिस ने कार्रवाई की।
  7. 5 अक्टूबर को पुरुलिया में अगली रणनीति तय की जाएगी।

❓ अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

❓ कुर्मी समुदाय ST दर्जे की मांग क्यों कर रहा है?

कुर्मी समुदाय का मानना है कि उन्हें ऐतिहासिक रूप से आदिवासी माना गया है और ST दर्जा मिलने से उन्हें शिक्षा, नौकरी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में अधिक लाभ मिलेगा।

❓ क्या कुर्मी समुदाय पहले ST सूची में शामिल था?

1931 की जनगणना में उन्हें ST माना गया था, लेकिन 1950 की सूची में उनका नाम नहीं रखा गया।

❓ आंदोलन का विधानसभा चुनावों पर क्या असर हो सकता है?

कुर्मी समुदाय का प्रभाव 35 विधानसभा सीटों पर है, जिससे चुनावी समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।

❓ क्या आंदोलन केवल पश्चिम बंगाल तक सीमित है?

नहीं, यह आंदोलन झारखंड और ओडिशा में भी फैल चुका है, जहां कुर्मी समुदाय की उपस्थिति है।

🔚 निष्कर्ष

कुर्मी समुदाय का आंदोलन पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक अहम मोड़ बनता जा रहा है। ST दर्जे की मांग को लेकर शुरू हुआ यह विरोध प्रदर्शन अब राज्य की चुनावी रणनीति को प्रभावित करने की स्थिति में है। प्रशासनिक कार्रवाई, कानूनी हस्तक्षेप और आगामी योजनाएं इस आंदोलन की दिशा तय करेंगी। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य और केंद्र सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती हैं।

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