बेबाक बयानों से सुर्खियों में रहने वाले सत्यपाल मलिक का निधन, छात्र राजनीति से लेकर राज्यपाल पद तक का सफर.

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल और देश के जाने-माने राजनेता सत्यपाल मलिक का मंगलवार को दिल्ली में निधन हो गया। वे 78 वर्ष के थे और लंबे समय से किडनी संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे। दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में उन्होंने दोपहर करीब 1 बजे अंतिम सांस ली।

अपने बेबाक और विवादित बयानों के लिए मशहूर रहे सत्यपाल मलिक ने राजनीति में पांच दशकों से अधिक का लंबा सफर तय किया, जिसमें उन्होंने विधानसभा सदस्य, सांसद, केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।

राजनीतिक सफर की शुरुआत
सत्यपाल मलिक का जन्म उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हुआ। 1965 में समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया की विचारधारा से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में कदम रखा।

1966-67 में वे मेरठ कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष बने, इसके बाद 1968-69 में मेरठ विश्वविद्यालय (वर्तमान में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय) के छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए। छात्र राजनीति का यह दौर उनके मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखने की नींव साबित हुआ।

पहली बार विधायक और दल-बदल का दौर
1974 में वे भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत विधानसभा से विधायक बने और पार्टी के मुख्य सचेतक नियुक्त हुए। 1975 में वे लोक दल के अखिल भारतीय महासचिव बने और 1980 में लोक दल से राज्यसभा पहुंचे।

1984 में वे कांग्रेस में शामिल हुए और 1986 में राज्यसभा के लिए दोबारा चुने गए। लेकिन 1987 में बोफोर्स घोटाले से नाराज होकर उन्होंने कांग्रेस और राज्यसभा, दोनों से इस्तीफा दे दिया और ‘जन मोर्चा’ का गठन किया, जो बाद में जनता दल में विलय हो गया।

1989 में वे अलीगढ़ से लोकसभा सांसद बने और 1990 में संसदीय कार्य एवं पर्यटन राज्य मंत्री का पद संभाला।

भाजपा में नई पारी
2004 में सत्यपाल मलिक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और बागपत से चुनाव मैदान में उतरे। 2005-06 में उन्होंने उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष का पद संभाला, जबकि 2009 में उन्हें किसान मोर्चा का प्रभारी बनाया गया। 2012 और 2014 में वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुने गए। कृषि मुद्दों की उनकी गहरी समझ के कारण वे पार्टी की किसान रैलियों में एक अहम चेहरा बने रहे।

राज्यपाल के रूप में कार्यकाल
2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। अगले ही वर्ष, 23 अगस्त 2018 को वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने। उनका कार्यकाल ऐतिहासिक रहा क्योंकि उनके ही कार्यकाल में 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा (अनुच्छेद 370) समाप्त किया गया और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया।

इसके बाद वे गोवा और फिर मेघालय के राज्यपाल बने। राज्यपाल रहते हुए भी उन्होंने कई बार केंद्र सरकार की नीतियों, खासकर तीन कृषि कानूनों, की आलोचना की और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर खुलकर बयान दिए।

बेबाक बयानों का सफर
सत्यपाल मलिक को उनके बेबाक और निडर बयानों के लिए जाना जाता था। वे अक्सर भ्रष्टाचार, किसान मुद्दों और नीतिगत फैसलों पर खुलकर टिप्पणी करते थे, चाहे इसके लिए उन्हें सत्ता पक्ष की नाराजगी ही क्यों न झेलनी पड़े।

उनका राजनीतिक सफर इस बात की मिसाल है कि अपने सिद्धांतों पर कायम रहते हुए भी कोई व्यक्ति प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों क्षेत्रों में उच्चतम पदों तक पहुंच सकता है

राजनीतिक पदों का सारांश
1974-77: विधायक, उत्तर प्रदेश विधानसभा (बागपत)

1980-84: सांसद, राज्यसभा (लोक दल)

1986-89: सांसद, राज्यसभा (कांग्रेस)

1989-91: सांसद, लोकसभा (अलीगढ़, जनता दल)

1990: राज्य मंत्री, संसदीय कार्य और पर्यटन

2017-18: राज्यपाल, बिहार

2018-19: राज्यपाल, जम्मू-कश्मीर

2019-20: राज्यपाल, गोवा

2020-22: राज्यपाल, मेघालय

अंतिम विदाई
सत्यपाल मलिक का निधन भारतीय राजनीति के उस अध्याय का समापन है, जिसमें संघर्ष, विचारधारा, स्पष्टवादिता और जनसेवा का अद्भुत मेल देखने को मिला। छात्र नेता से राज्यपाल तक की उनकी यात्रा आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बनी रहेगी।

Leave a Comment

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now