बिहार के कैमूर जिले की पहाड़ियों पर स्थित मुंडेश्वरी माता मंदिर को भारत का सबसे प्राचीन जीवित मंदिर माना जाता है। नवरात्रि के अवसर पर यहां हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय वास्तुकला और संस्कृति का एक अनमोल प्रतीक भी है।
🏔️ मंदिर की भौगोलिक स्थिति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मुंडेश्वरी माता मंदिर बिहार के कैमूर जिले के पवरा पहाड़ी पर स्थित है, जिसकी ऊंचाई लगभग 600 फीट है। यह मंदिर रामगढ़ गांव के पास स्थित है और सोन नदी के निकट कैमूर पठार पर बना हुआ है।
- स्थान: पवरा पहाड़ी, कैमूर जिला, बिहार
- ऊंचाई: 600 फीट (185 मीटर)
- निर्माण वर्ष: अनुमानित 108 ईस्वी
- संरक्षण: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1915 से संरक्षित स्मारक
भारतीय पुरातत्व विभाग और बिहार पर्यटन विभाग के अनुसार, यह मंदिर 108 ईस्वी में निर्मित हुआ था और तब से लेकर आज तक यहां पूजा-अर्चना बिना किसी रुकावट के होती आ रही है।
🛕 मंदिर की वास्तुकला और धार्मिक विशेषताएं
🧱 नागर शैली में निर्मित अष्टकोणीय मंदिर
मुंडेश्वरी मंदिर की वास्तुकला नागर शैली की है, जो प्राचीन भारतीय मंदिर निर्माण की एक विशिष्ट शैली है। मंदिर का गर्भगृह अष्टकोणीय आकार का है, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाता है।
- अष्टकोणीय गर्भगृह
- पत्थरों पर की गई बारीक नक्काशी
- मंदिर का बाहरी आयाम: लगभग 12.2 मीटर
- आंतरिक आयाम: लगभग 6 मीटर
🕉️ शिव और शक्ति का संगम
मंदिर में देवी मुंडेश्वरी की आठ भुजाओं वाली प्रतिमा विराजमान है, जो वाराही रूप में पूजित हैं। उनका वाहन भैंसा है। साथ ही पंचमुखी शिवलिंग भी स्थापित है, जिसका रंग सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलता है। यह मंदिर शैव और शक्त दोनों संप्रदायों का संगम है।
📜 धार्मिक मान्यता और अनुष्ठान
🔱 1900 वर्षों से अनवरत पूजा
मुंडेश्वरी माता मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां पिछले 1900 वर्षों से बिना किसी रुकावट के पूजा-अर्चना होती आ रही है। यह मंदिर भारत का सबसे पुराना जीवित मंदिर माना जाता है।
🪔 नवरात्रि में विशेष पूजा
शारदीय और वासंतिक नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा का आयोजन होता है। नौ दिनों तक कलश स्थापना के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। अष्टमी की रात को निशा पूजा होती है, जो विशेष रूप से प्रभावशाली मानी जाती है।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ
- कलश स्थापना
- निशा पूजा
- माघ और चैत्र में यज्ञ
📅 प्रमुख पर्व और भक्तों की संख्या
🎉 त्योहारों पर भक्तों की भीड़
नवरात्रि, वसंत पंचमी, रामनवमी और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर मंदिर में हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। माता मुंडेश्वरी की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं।
- नवरात्रि: विशेष पूजा और अनुष्ठान
- महाशिवरात्रि: शिवलिंग की पूजा
- रामनवमी: राम भक्तों की उपस्थिति
- वसंत पंचमी: देवी सरस्वती की आराधना
🐐 अनोखी परंपरा: रक्तहीन बलि
इस मंदिर में एक विशेष परंपरा निभाई जाती है जिसे “रक्तहीन बलि” कहा जाता है। इसमें जानवरों को देवी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, और देवी की कृपा से वे कुछ क्षणों के लिए अचेत हो जाते हैं, फिर पुनः जीवित हो उठते हैं। यह परंपरा श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
🚉 मंदिर तक कैसे पहुंचें?
🗺️ यात्रा मार्ग और सुविधाएं
मुंडेश्वरी माता मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन मोहनियां (भभुआ रोड) है। वहां से सड़क मार्ग द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
- निकटतम स्टेशन: मोहनियां (भभुआ रोड)
- सड़क मार्ग: पहाड़ी काटकर बनाई गई सीढ़ियां और रेलिंग युक्त सड़क
- वाहन सुविधा: सड़क मार्ग से वाहन द्वारा मंदिर तक पहुंच संभव
🏛️ पुरातत्व विभाग की भूमिका
भारतीय पुरातत्व विभाग ने 1968 में मंदिर की 97 दुर्लभ मूर्तियों को सुरक्षा के दृष्टिकोण से पटना संग्रहालय में स्थानांतरित किया था। वहीं तीन मूर्तियां कोलकाता संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई हैं।
📚 ऐतिहासिक संदर्भ और शोध
मंदिर के निर्माण को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ विशेषज्ञ इसे 6वीं-7वीं शताब्दी का मानते हैं, जबकि अन्य इसे 16वीं-17वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित मानते हैं। हालांकि, मंदिर की धार्मिक गतिविधियां 108 ईस्वी से निरंतर चल रही हैं।
📌 मुंडेश्वरी मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
- यह मंदिर भारत का सबसे पुराना जीवित मंदिर माना जाता है।
- यहां शिव और शक्ति दोनों की पूजा होती है।
- मंदिर की वास्तुकला अष्टकोणीय और नागर शैली की है।
- यहां रक्तहीन बलि की परंपरा निभाई जाती है।
- मंदिर 600 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है।
❓FAQs
❓ मुंडेश्वरी माता मंदिर कहां स्थित है?
यह मंदिर बिहार के कैमूर जिले के पवरा पहाड़ी पर स्थित है।
❓ मंदिर की स्थापना कब हुई थी?
भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार, मंदिर का निर्माण 108 ईस्वी में हुआ था।
❓ मंदिर में कौन-कौन से देवी-देवताओं की पूजा होती है?
यहां देवी मुंडेश्वरी, पंचमुखी शिवलिंग, भगवान गणेश, सूर्य और विष्णु की पूजा होती है।
❓ मंदिर तक कैसे पहुंचा जा सकता है?
मोहनियां रेलवे स्टेशन से सड़क मार्ग द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
❓ क्या मंदिर में बलि दी जाती है?
यहां रक्तहीन बलि की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें जानवर को क्षणिक अचेत अवस्था में लाया जाता है।
🔚 निष्कर्ष
मुंडेश्वरी माता मंदिर न केवल भारत का सबसे पुराना जीवित मंदिर है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म और वास्तुकला का एक जीवंत उदाहरण भी है। नवरात्रि जैसे पर्वों पर यहां की विशेष पूजा और अनुष्ठान श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं। यह मंदिर हर उस व्यक्ति के लिए एक आदर्श स्थल है जो इतिहास, धर्म और प्रकृति के संगम की तलाश में है।
External Source: Patrika Report
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