यादव और मुस्लिम पर विवादित आदेश से मचा बवाल, CM योगी ने लिया बड़ा एक्शन – निदेशक सस्पेंड

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पंचायती राज विभाग के एक विवादित आदेश पत्र ने सियासी हलचल मचा दी है। आदेश में विशेष जाति (यादव) और धर्म (मुस्लिम) के लोगों के कब्जों को हटाने का जिक्र था, जिसके सामने आते ही विपक्ष से लेकर सोशल मीडिया तक में बवाल खड़ा हो गया। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तुरंत संज्ञान लेकर इस आदेश को रद्द कर दिया और जिम्मेदार अधिकारी को निलंबित कर दिया
आदेश से क्यों मचा हड़कंप?
यह आदेश पत्र पंचायती राज निदेशक कार्यालय से जारी होकर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को भेजा गया था, जिसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि प्रदेश की 57,691 ग्राम पंचायतों में विशेष जाति (यादव) और विशेष धर्म (मुस्लिम) के लोगों द्वारा किए गए अवैध कब्जों को हटाने के लिए अभियान चलाया जाए।

इन कब्जों में ग्राम सभा की भूमि, पोखरे, खाद गड्ढे, खलिहान, खेल मैदान, श्मशान भूमि और ग्राम पंचायत भवन जैसी जगहों का उल्लेख किया गया था। आदेश में कहा गया था कि सक्षम अधिकारी टीम बनाकर अभियान चलाएं और अवैध कब्जों से जमीनें मुक्त कराएं।

पत्र पर पंचायती राज विभाग के संयुक्त निदेशक (सुरेंद्र नाथ सिंह) के डिजिटल हस्ताक्षर थे। जाति और धर्म के नाम से की गई यह विशेष कार्रवाई का निर्देश सामने आते ही इसे भेदभावपूर्ण करार देते हुए कई राजनीतिक दलों और नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी।
CM योगी ने दिखाई सख्ती
जैसे ही मामला सुर्खियों में आया, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्काल इस आदेश को निरस्त करने का निर्देश दिया। साथ ही, संयुक्त निदेशक को निलंबित कर विभागीय जांच के आदेश भी दे दिए।

सीएम योगी ने स्पष्ट कहा कि “सरकार की नीति किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह या भेदभाव पर आधारित नहीं हो सकती। जातीय या धार्मिक आधार पर की गई कार्रवाई अस्वीकार्य है।” उन्होंने यह भी दोहराया कि अवैध कब्जा हटाने की कार्रवाई केवल कानूनी प्रक्रिया और निष्पक्ष जांच के आधार पर होगी, न कि किसी जाति या धर्म के नाम पर।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस आदेश के सामने आते ही विपक्षी दलों ने सरकार पर जमकर निशाना साधा। कई नेताओं ने इसे संविधान विरोधी और भेदभावपूर्ण बताते हुए सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना की। कुछ ने तो यहां तक कहा कि यह आदेश साम्प्रदायिक तनाव भड़का सकता था।

सोशल मीडिया पर भी यह मामला तेजी से सुर्खियों में आ गया, जहां लोगों ने आदेश की भाषा और उसके उद्देश्य पर सवाल उठाए। हालांकि सीएम योगी की त्वरित कार्रवाई से विवाद कुछ शांत हुआ, लेकिन विपक्ष का सरकार पर हमला अब भी जारी है।
क्या कहता है कानून?
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अवैध कब्जा हटाने की कार्रवाई पूरी तरह निष्पक्ष और बिना भेदभाव के होनी चाहिए। किसी भी सरकारी आदेश में जाति या धर्म का उल्लेख करना न केवल प्रशासनिक मर्यादाओं के खिलाफ है, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए हैं, और प्रशासनिक कार्रवाई किसी व्यक्ति की जातीय या धार्मिक पहचान के आधार पर नहीं हो सकती।
निष्कर्ष
इस पूरे मामले ने यह साफ कर दिया है कि सरकारी आदेशों में पारदर्शिता और निष्पक्षता कितनी जरूरी है। मुख्यमंत्री योगी का त्वरित हस्तक्षेप यह दिखाता है कि सरकार ऐसे भेदभावपूर्ण आदेशों के प्रति शून्य सहिष्णुता रखती है।

अवैध कब्जों के खिलाफ कार्रवाई तो होगी, लेकिन वह कानून के दायरे में, बिना किसी जातीय या धार्मिक पूर्वाग्रह के।

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