हाईकोर्ट ने दतिया SDM संतोष तिवारी पर लगाया जुर्माना, कार्यशैली पर उठे सवाल

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने दतिया के उप जिलाधिकारी (SDM) संतोष तिवारी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने रिकॉर्ड समय पर प्रस्तुत न करने को संवैधानिक अवहेलना और शत्रुतापूर्ण रवैया करार देते हुए उन पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।

⚖️ पृष्ठभूमि: संपत्ति विवाद से शुरू हुआ मामला

दतिया जिले में प्रवीण कुमार गुप्ता और शैलेंद्र शर्मा के बीच एक संपत्ति विवाद चल रहा है। इस मामले में शैलेंद्र गुप्ता ने हाईकोर्ट में द्वितीय अपील दायर की थी। अपील की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भाड़ा नियंत्रक अधिकारी की रिपोर्ट और संबंधित रिकॉर्ड तलब किया था।

🔍 मुख्य बिंदु:

  • मामला वर्ष 2022-23 का था।
  • अंतिम आदेश 20 सितम्बर 2022 को पारित हो चुका था।
  • कोर्ट ने रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के लिए दो अवसर दिए: 3 सितम्बर और 23 सितम्बर 2025।
  • बावजूद इसके, रिकॉर्ड समय पर प्रस्तुत नहीं किया गया।

🚨 कोर्ट की टिप्पणी: “संवैधानिक अवहेलना और शत्रुतापूर्ण रवैया”

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि संतोष तिवारी ने जानबूझकर रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं किया, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हुई। कोर्ट ने इसे न केवल लापरवाही माना, बल्कि संवैधानिक आदेशों की अवहेलना भी करार दिया।

🧾 कोर्ट की टिप्पणियाँ:

  1. “यदि कोई अधिकारी स्वयं कानून का पालन नहीं करता, तो उसे नागरिकों के अधिकार तय करने की शक्ति कैसे दी जा सकती है?”
  2. “ग्वालियर और दतिया की दूरी केवल 70 किलोमीटर है, फिर भी रिकॉर्ड समय पर नहीं पहुंचा।”

💸 जुर्माना और निर्देश: 25,000 रुपये निजी खाते से जमा करें

कोर्ट ने संतोष तिवारी को निर्देश दिया कि वे 26 सितम्बर 2025 तक अपने निजी बैंक खाते से 25,000 रुपये की लागत जमा करें। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि यह राशि राज्य सरकार से प्रतिपूर्ति नहीं की जा सकती।

📌 जुर्माने से जुड़े निर्देश:

  • राशि 26 सितम्बर तक जमा करनी होगी।
  • भुगतान निजी खाते से किया जाएगा।
  • राज्य सरकार से प्रतिपूर्ति की अनुमति नहीं।

🧑‍⚖️ प्रशासनिक कार्रवाई की संभावना

हाईकोर्ट ने इस मामले को मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव और दतिया कलेक्टर को विचारार्थ भेजा है। यह संकेत है कि संतोष तिवारी के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की संभावना बन सकती है।

📤 भेजा गया मामला:

  • मुख्य सचिव को रिपोर्ट की गई।
  • दतिया कलेक्टर को भी सूचित किया गया।
  • अधिकारी की शक्तियों पर पुनर्विचार की आवश्यकता जताई गई।

🏛️ न्यायिक प्रक्रिया में देरी: एक गंभीर चिंता

इस मामले ने न्यायिक प्रक्रिया में देरी के मुद्दे को फिर से उजागर किया है। जब अधिकारी समय पर रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं करते, तो इससे न केवल न्याय में विलंब होता है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

📉 देरी के प्रभाव:

  • सुनवाई में बाधा
  • अपीलकर्ता को मानसिक और आर्थिक नुकसान
  • न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्न

📚 कानूनी विश्लेषण: क्या यह अवमानना का मामला है?

हालांकि कोर्ट ने इसे संवैधानिक अवहेलना कहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में भी आ सकता है। यदि अधिकारी जानबूझकर आदेशों की अवहेलना करता है, तो यह गंभीर कानूनी उल्लंघन माना जाता है।

⚖️ विशेषज्ञों की राय:

  • यह मामला अवमानना की श्रेणी में आ सकता है।
  • प्रशासनिक जवाबदेही तय करना आवश्यक है।
  • भविष्य में ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जरूरी हैं।

❓ FAQs

❓ SDM संतोष तिवारी पर जुर्माना क्यों लगाया गया?

हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड समय पर प्रस्तुत न करने और न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करने पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

❓ क्या यह मामला न्यायालय की अवमानना है?

कोर्ट ने इसे संवैधानिक अवहेलना कहा है, लेकिन विशेषज्ञ इसे न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में भी मानते हैं।

❓ क्या संतोष तिवारी को प्रशासनिक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा?

मामला मुख्य सचिव और कलेक्टर को भेजा गया है, जिससे प्रशासनिक कार्रवाई की संभावना बनती है।

❓ जुर्माने की राशि कौन जमा करेगा?

SDM को निर्देश दिया गया है कि वे यह राशि अपने निजी बैंक खाते से जमा करें, राज्य सरकार से प्रतिपूर्ति नहीं की जा सकती।

🔚 निष्कर्ष: जवाबदेही तय करना समय की मांग

दतिया SDM संतोष तिवारी के खिलाफ हाईकोर्ट की सख्ती ने एक बार फिर प्रशासनिक जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित किया है। जब अधिकारी स्वयं कानून का पालन नहीं करते, तो उनके निर्णयों की वैधता पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। यह मामला न केवल एक व्यक्ति विशेष की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि प्रशासनिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को भी दर्शाता है।

External Source: Patrika Report

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