“YAMUNA RIVER ” 5 किलोमीटर तक फैल गई – चारों ओर तबाही और डर का माहौल

WhatsAppImage2025 08 02at9.42.51PM "YAMUNA RIVER " 5 किलोमीटर तक फैल गई – चारों ओर तबाही और डर का माहौल

नई दिल्ली: शहर पर संकट मंडरा रहा है, न किसी दुश्मन का हमला, न महामारी – इस बार कुदरत ही दुश्मन बन गई है।

यमुना नदी, जो कभी शांति और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती थी, आज एक भयावह रूप धारण कर चुकी है। बीते कुछ दिनों में नदी का फैलाव इतना अधिक हो चुका है कि अब यह कई क्षेत्रों में लगभग 5 किलोमीटर चौड़ी हो चुकी है। यह कोई आम बाढ़ नहीं है – यह एक जीवंत संकट है जो हज़ारों लोगों की ज़िंदगी को प्रभावित कर रहा है।

दिल्ली और उत्तर भारत के कई हिस्सों में यह नदी अब तबाही का दूसरा नाम बन चुकी है। गांव, खेत, मकान, स्कूल – सब कुछ धीरे-धीरे पानी में समा चुका है।


शुरुआत कैसे हुई? “YAMUNA RIVER”

इस संकट की शुरुआत हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भारी बारिश से हुई। वहां की नदियों और ग्लेशियरों से बहता पानी सीधे यमुना में पहुंचा, जिससे नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ा।

कुछ ही दिनों में नदी खतरे के निशान को पार कर गई और फिर शुरू हुआ तबाही का तांडव। यमुना ने अपने पारंपरिक किनारों को तोड़ते हुए आसपास के इलाकों को डुबो दिया। अब तो स्थिति यह है कि नदी का फैलाव कई जगहों पर 5 किलोमीटर तक हो गया है।


मानव त्रासदी: उजड़ते घर, डूबते सपने

“पानी रात के अंधेरे में चुपचाप आया,” ये कहना है रेखा देवी का, जो दिल्ली के नजदीक एक गांव में रहती हैं। “हमें बस इतना ही कहा गया कि सुरक्षित जगह चले जाएं, लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि पानी इतनी तेजी से सब कुछ डुबो देगा।”

रेखा देवी अब अपने परिवार के साथ एक राहत शिविर में रह रही हैं – वो भी सैकड़ों लोगों के साथ। खाने-पीने की कमी, गंदगी, बीमारियां – ये सारी समस्याएं अब उनकी नई ज़िंदगी बन चुकी हैं।

दिल्ली के यमुना बाजार, मजनूं का टीला, मठ मार्केट जैसे निचले इलाके पूरी तरह से जलमग्न हो चुके हैं। लोग अपने घरों से सिर पर सामान रखकर बाहर निकलते दिखाई दे रहे हैं।


सरकार अलर्ट पर, लेकिन हालात काबू में नहीं

राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिए हैं। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और दिल्ली आपदा प्रबंधन बल पूरे जोश से काम में लगे हैं। मगर बाढ़ की विकरालता इतनी अधिक है कि व्यवस्थाएं नाकाफी साबित हो रही हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस स्थिति को “अभूतपूर्व” बताते हुए केंद्र से अतिरिक्त सहायता की मांग की है।

सोशल मीडिया पर बाढ़ से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं – जिसमें डूबे हुए घर, बहती सड़कें, रोते-बिलखते बच्चे और नावों से हो रहा बचाव कार्य साफ देखा जा सकता है।


क्या यह जलवायु परिवर्तन का नतीजा है?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानव निर्मित संकट है।

पार्यावरण वैज्ञानिक डॉ. नीलिमा जोशी कहती हैं, “हमने यमुना को एक नाला समझ लिया था। उस पर कचरा डाला, उसके किनारों पर अतिक्रमण किया, और अब जब नदी अपने स्वाभाविक प्रवाह में लौटी है, तो हम डर रहे हैं।”

बदलती जलवायु ने भी स्थिति को और बदतर कर दिया है। अधिक गर्मी के कारण हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। भारी बारिश और बादल फटने जैसी घटनाएं अब आम हो चुकी हैं।


क्या आने वाले दिन और भी खतरनाक हो सकते हैं?

हालांकि कुछ जगहों पर जलस्तर में थोड़ी गिरावट आई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि खतरा टला नहीं है। यदि पहाड़ों में और बारिश हुई तो यह पानी एक बार फिर कहर ढा सकता है।

इसके अलावा, बाढ़ के बाद की स्थिति भी बेहद गंभीर होती है – मच्छरों का प्रकोप, डेंगू, मलेरिया, दस्त और संक्रमण जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।


क्या कोई समाधान है?

सरकार अब दीर्घकालीन समाधान पर विचार कर रही है – जैसे कि:

  • नदी के किनारे “बफर जोन” बनाना
  • पुराने जलमार्गों को पुनर्जीवित करना
  • अतिक्रमण हटाना
  • शुरुआती चेतावनी तंत्र (Early Warning System) को सशक्त बनाना

लेकिन सवाल यह है कि क्या ये योजनाएं कागजों से बाहर निकल पाएंगी?


मानवता अब भी जीवित है

इस संकट की घड़ी में लोग एक-दूसरे की मदद करने में भी पीछे नहीं हैं। कुछ युवाओं ने अपनी नावें दान दी हैं, तो कई लोग भोजन और कपड़े बांट रहे हैं। राहत शिविरों में डॉक्टर बिना रुके इलाज कर रहे हैं।

यही इस संकट की सबसे बड़ी सीख है – कि इंसानियत अब भी जिंदा है।


नदी नाराज़ नहीं, बस अपना हक मांग रही है

विशेषज्ञों का कहना है कि नदी ने कोई गलती नहीं की। जो गलती हुई है, वो हमारी है।

“नदी को हमने जबरन सीमित कर दिया, उसका रास्ता बंद किया, कचरे से भर दिया। अब जब वो अपने असली रूप में बह रही है, तो हम डर गए हैं,” कहते हैं पर्यावरणविद प्रोफेसर रमेश कुमार।


निष्कर्ष: क्या हम अब भी नहीं सीखेंगे?

यमुना नदी की यह बाढ़ एक चेतावनी है। ये सिर्फ एक प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि एक दर्पण है जो हमें दिखा रहा है कि हमने प्रकृति के साथ कितना खिलवाड़ किया है।

पानी उतर जाएगा, लेकिन जख्म नहीं भरेंगे।

अब वक्त आ गया है कि हम सिर्फ बाढ़ को एक हादसा न समझें, बल्कि इसे बदलाव की शुरुआत बनाएं। वरना अगली बार हालात इससे भी बदतर हो सकते

Leave a Comment

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now