“अटल बिहारी वाजपेयी” : एक ऐसा नेता, जो दिलों पर राज करता था
“अटल बिहारी वाजपेयी“ 16 अगस्त को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि है। एक ऐसा नेता जिनकी भाषण शैली, राजनीतिक समझ और मानवीय संवेदनाएं आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। “हार नहीं मानूंगा…” जैसी पंक्तियों से उन्होंने न सिर्फ कविता को राजनीति से जोड़ा, बल्कि देशवासियों को उम्मीद की एक नई दिशा दी।
“अटल बिहारी वाजपेयी” संसद में गरिमा और संवाद के प्रतीक
आज जब संसद में शोर-शराबा, आरोप-प्रत्यारोप और गतिरोध आम हो गया है, तब अटल जी की याद और भी गहराई से आती है। वो दौर अलग था जब मतभेद होते थे, लेकिन मर्यादा बनी रहती थी। जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता जब आमने-सामने होते थे, तो संसद एक संवाद का मंच बनती थी, न कि अखाड़ा।
“अटल बिहारी वाजपेयी” नेहरू की भविष्यवाणी: “ये युवक एक दिन प्रधानमंत्री बनेगा”
1957 में जब अटल जी पहली बार संसद पहुंचे, तब उनकी हिंदी वाकपटुता ने पंडित नेहरू को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने एक विदेशी मेहमान से वाजपेयी का परिचय कराते हुए कहा—“यह युवक एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।” नेहरू की यह भविष्यवाणी लगभग 40 साल बाद सच साबित हुई जब वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने और फिर 1999 में लगातार दूसरी बार इस पद को संभाला।
नेहरू और वाजपेयी: मतभेदों के बावजूद सम्मान
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने एक बार नेहरू को कहा था—“आपका मिला-जुला व्यक्तित्व है, आपमें चर्चिल भी हैं और चेम्बरलेन भी।” इसके बावजूद नेहरू नाराज नहीं हुए, बल्कि एक शाम को अटल जी से मिलकर बोले—“आपने शानदार भाषण दिया।” यह किस्सा बताता है कि राजनीतिक मतभेदों के बीच भी व्यक्तिगत सम्मान कैसे बना रहता है।
संसद में पीछे की सीट से शुरू हुआ सफर
अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में अपने शुरुआती दिनों में पीछे की सीटों से शुरुआत की थी। लेकिन उनकी भाषण शैली और विचारों की स्पष्टता ने उन्हें धीरे-धीरे आगे ला दिया। मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री बनने के बाद उन्होंने एक बार साउथ ब्लॉक में नेहरू की तस्वीर गायब देखी। उन्होंने पूछा, “यह चित्र कहां गया?” कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन जल्द ही वह तस्वीर फिर से लगा दी गई।
ग्वालियर के लड्डू और मंगोड़े: स्वाद से जुड़ी यादें
राजनीति के ध्रुव तारा अटल जी खाने के भी शौकीन थे। ग्वालियर के बहादुरा के लड्डू और फुटपाथ पर बैठकर मंगोड़े बेचने वाली अम्मा के मंगोड़े उनके पसंदीदा थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे ग्वालियर से लड्डू मंगवाते थे, खासकर अपने जन्मदिन पर। उनके करीबी बताते हैं कि वे बिना किसी सूचना के सिर्फ लड्डू और मंगोड़े खाने ग्वालियर पहुंच जाते थे।
लालू यादव का संसद में मज़ाकिया किस्सा
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने एक बार संसद में चुटकी लेते हुए कहा—“आप कह रहे थे कि नेहरू जी ने कहा था कि अटल एक दिन प्रधानमंत्री बनेगा। यह रिकॉर्ड में है। नेहरू ने एक बार कहा था, लेकिन आप दो बार प्रधानमंत्री बन गए। आप मुल्क की जान छोड़िए।” इस मज़ाक पर खुद अटल जी भी मुस्कुरा दिए थे।
जनता के नेता: प्रतिबद्धता और लोकप्रियता का संगम
अटल बिहारी वाजपेयी जनता के बीच अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता और सादगी के लिए जाने जाते थे। 13 अक्टूबर 1999 को उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार का नेतृत्व करते हुए दूसरी बार प्रधानमंत्री पद संभाला। इससे पहले वे 1996 में कुछ ही समय के लिए इस पद पर रहे थे। पंडित नेहरू के बाद वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने लगातार दो बार यह पद संभाला।
2018 में हुआ निधन, लेकिन विचार आज भी जीवित
16 अगस्त 2018 को अटल जी ने देह त्यागी, लेकिन उनकी विचारधारा, ओजस्वी भाषण शैली और प्रेरणादायक कविताएं आज भी करोड़ों दिलों में जीवित हैं। ‘हार नहीं मानूंगा…’ जैसी पंक्तियां संघर्ष के हर मोड़ पर हौसले की लौ जलाती हैं।
“अटल की आवाज़” – उनकी कविताओं और विचारों की गूंज को दर्शाता है
अटल थे, अडिग थे, शब्दों के जादूगर,
संघर्षों में भी मुस्कान थी उनके भीतर।
“हार नहीं मानूंगा” कहकर जो चल पड़े,
वो इतिहास की राहों में दीप बन जल पड़े।
नेहरू ने देखा था जो सपना एक दिन,
वो साकार हुआ, बना भारत का रत्न।
ग्वालियर के लड्डू, संसद की गरिमा,
हर किस्से में बसती है उनकी महिमा।
राजनीति में कविता, और कविता में नीति,
अटल जी की शैली थी सबसे विशिष्ट।
आज भी जब संसद में शोर सुनाई देता है,
एक अटल सन्नाटा दिल में उतर जाता है।